खत्म हुआ भारत पाकिस्तान के बीच Shimla Agreement? 52 साल बाद!

हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले और उसके बाद भारतीय सेना द्वारा चलाए गए ऑपरेशन सिन्दूर से पाकिस्तान बौखला गया है। इन घटनाओं के बाद बुधवार को पाकिस्तान के रक्षा मंत्री द्वारा दिए गए एक बयान में कहा गया कि “शिमला समझौते(Shimla Agreement) की प्रासंगिकता अब खत्म हो रही है।” यह बयान न केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से गंभीर है, बल्कि इसका असर दक्षिण एशिया की शांति और सुरक्षा पर भी पड़ सकता है।

Shimla Agreement

शिमला समझौता क्या है?

शिमला समझौता (Shimla Agreement) भारत और पाकिस्तान के बीच 2 जुलाई 1972 को हुआ एक द्विपक्षीय समझौता है। यह समझौता भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति ज़ुल्फिकार अली भुट्टो के बीच हुआ था। इसका उद्देश्य 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद शांति बहाल करना और भविष्य में युद्ध जैसे हालात से बचना था।

शिमला समझौते के प्रमुख बिंदु

  1. द्विपक्षीय वार्ता की नीति: भारत और पाकिस्तान अपने सभी विवाद आपसी बातचीत और शांतिपूर्ण तरीकों से सुलझाएंगे, किसी तीसरे पक्ष को शामिल नहीं किया जाएगा।
  2. वर्तमान नियंत्रण रेखा (LoC) का सम्मान: दोनों देश नियंत्रण रेखा का सम्मान करेंगे और उसे एकतरफा रूप से नहीं बदला जाएगा।
  3. शांति और सौहार्द बनाए रखना: दोनों देश एक-दूसरे की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और राजनीतिक स्वतंत्रता का सम्मान करेंगे।
  4. युद्धबंदियों की वापसी: 1971 युद्ध के दौरान पकड़े गए युद्धबंदियों की वापसी की प्रक्रिया शांति से पूरी की जाएगी।
  5. स्थायी शांति के लिए कार्य: दोनों देश अपने संबंधों को सामान्य करने के लिए प्रयास करेंगे।

शिमला समझौते का महत्व

शिमला समझौते(Shimla Agreement) को भारत और पाकिस्तान के बीच स्थायी शांति की नींव माना जाता है। यह एकमात्र ऐसा दस्तावेज़ है जो स्पष्ट रूप से कहता है कि कश्मीर सहित सभी विवाद द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से सुलझाए जाएंगे। इसी कारण भारत हमेशा यह कहता है कि कश्मीर मुद्दे में किसी तीसरे देश या संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता की कोई आवश्यकता नहीं है।

यह समझौता भारत की कूटनीतिक जीत भी माना गया था क्योंकि इसमें पाकिस्तान ने स्पष्ट रूप से द्विपक्षीय वार्ता का वादा किया था और युद्ध के बाद हुए नुकसान की भरपाई के लिए किसी भी अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप की मांग से पीछे हट गया था।

क्या शिमला समझौता अब समाप्त हो सकता है?

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री द्वारा हाल ही में दिए गए बयान में यह कहा गया कि भारत की ओर से अनुच्छेद 370 हटाने, नियंत्रण रेखा पर हमलों और कूटनीतिक संवाद की कमी को देखते हुए अब शिमला समझौते की प्रासंगिकता खत्म हो चुकी है।

संभावित कारण:

  • पिछली घटनाओं की श्रृंखला: 2019 में भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना और उसके बाद पाकिस्तान द्वारा राजनयिक संबंधों में कटौती।
  • पहलगाम हमला और ऑपरेशन सिन्दूर: पाकिस्तान समर्थित आतंकियों द्वारा कश्मीर में हमला और उसके जवाब में भारतीय सेना की कठोर कार्रवाई।
  • निरंतर संघर्ष विराम उल्लंघन: नियंत्रण रेखा पर आए दिन गोलाबारी और घुसपैठ की घटनाएं।

अगर Shimla Agreement समाप्त होता है तो क्या होगा?

  1. कश्मीर पर अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप बढ़ सकता है: अगर पाकिस्तान शिमला समझौते को समाप्त मान लेता है तो वह कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की कोशिश करेगा। इससे संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, चीन जैसे देशों की नजर इस विवाद पर फिर से जा सकती है।
  2. LoC पर सैन्य तनाव चरम पर पहुंचेगा: यदि शिमला समझौता समाप्त माना जाता है तो नियंत्रण रेखा का सम्मान भी खत्म हो सकता है, जिससे पाकिस्तान द्वारा सीमावर्ती इलाकों में घुसपैठ और गोलाबारी में इज़ाफा होने की संभावना रहेगी।

भारत का रुख क्या है?

भारत ने हमेशा शिमला समझौते को एक मजबूत आधार बताया है और कहा है कि सभी विवादों का हल आपसी संवाद से ही संभव है। भारत का यह भी मानना है कि पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद का समर्थन इस समझौते का खुला उल्लंघन है, और अगर कोई पक्ष इसे निष्क्रिय मानता है तो उसके नतीजे गंभीर होंगे।

क्या विकल्प बचते हैं?

यदि शिमला समझौता टूटता है तो दोनों देशों के पास कुछ ही विकल्प बचते हैं:

  • नया समझौता या संधि: यदि दोनों देश चाहें तो शांति बहाली के लिए एक नई संधि पर काम कर सकते हैं।
  • Track-II Diplomacy: सीधे संवाद की बजाय अराजकीय स्तर पर बातचीत की शुरुआत हो सकती है।
  • अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता की वापसी (भारत के विरोध के बावजूद): पाकिस्तान इसका प्रयास कर सकता है लेकिन भारत इसे मान्यता नहीं देगा।

निष्कर्ष

शिमला समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच शांति का एक ऐतिहासिक आधार रहा है। हाल के घटनाक्रमों ने इस पर सवाल खड़े किए हैं,अगर यह समझौता समाप्त होता है तो इसका असर दोनों देश के सम्बन्धों मे नकारात्मक रूप से पड़ेगा। हालांकि ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत की तरफ से कई बार साफ किया गया है की पाकिस्तान से अब कोई बात तभी होगी जब वह पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद पर रोक लगाएगा साथ ही अब पाकिस्तान से बात POJK पर ही होगी।

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