Inclusive Growth यानी समावेशी विकास भारतीय नीतिनिर्माण का एक केंद्रीय स्तंभ बन चुका है, विशेषकर ऐसे समय में जब आर्थिक असमानताएं और सामाजिक विषमता बढ़ रही है। आइए जानें UPSC GS 3 के इस टॉपिक से संबन्धित पहलुओं के बारे में :

समावेशी विकास(Inclusive Growth): अर्थ और परिभाषा
Inclusive Growth का तात्पर्य ऐसा आर्थिक विकास है जो समाज के हर वर्ग — चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, लिंग, क्षेत्र, वर्ग या शारीरिक स्थिति के आधार पर हो ;को लाभान्वित करता है। यह सिर्फ GDP बढ़ाने की बात ही नहीं करता, बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि विकास अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे।
Planning Commission (2011) की परिभाषा:
“Inclusive growth refers to broad-based, shared, and equitable economic growth. It creates opportunities for all, and ensures access to them.”
समावेशी विकास के मुख्य घटक:
- सभी लोगों को समान अवसर और भागीदारी मिले
- गरीबी उन्मूलन और रोजगार सृजन हो
- सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण सुनिश्चित हो
- शिक्षा और स्वास्थ्य तक समान पहुंच हो
- भौगोलिक संतुलन: ग्रामीण-शहरी अंतर समाप्त हो
- लैंगिक समानता और महिलाओं की भागीदारी बढ़े
समावेशी विकास का मूल्यांकन: कुछ प्रमुख आंकड़े
सूचकांक/डेटा | आँकड़ा |
भारत की Gini Coefficient (असमानता का सूचक) | ~0.35 (World Bank, 2022) |
NITI Aayog’s Multidimensional Poverty Index (2023) | 25 करोड़ भारतीय गरीबी से बाहर निकले (2015-16 से 2019-21 के बीच) |
भारत की बेरोजगारी दर (CMIE, 2024) | ~7.4% |
Gender Parity Index (UNESCO, 2022) | 1.03 (primary level), लेकिन higher education में गिरावट |
Scheduled Castes and Tribes literacy rate (2011 census) | SCs – 66.1%, STs – 59% (vs national average: 73%) |
समावेशी विकास की आवश्यकता
- संवैधानिक आदर्शों की पूर्ति होती है
- न्याय, समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व — संविधान के मूल तत्व समावेशी विकास की नींव हैं।
- सामाजिक अस्थिरता का नियंत्रण
- क्षेत्रीय, धार्मिक, जातीय असमानताएं अक्सर अशांति को जन्म देती हैं
- जनसंख्या लाभांश (Demographic Dividend)
- यदि हम युवाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार नहीं देंगे, तो यह लाभांश जनसंख्या बोझ में बदल सकता है।
- SDGs की प्राप्ति (SDG)
- Sustainable Development Goals (2030) में लगभग सभी लक्ष्य प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से समावेशी विकास से जुड़े हैं।
सरकार की प्रमुख पहलें: समावेशी विकास की दिशा में प्रयास
आर्थिक समावेशन के प्रयास:
- जन धन योजना – वित्तीय समावेशन के लिए
- PM SVANidhi – रेहड़ी-पटरी वालों के लिए आसान ऋण सुविधा
- Start-Up India – उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए
सामाजिक समावेशन के प्रयास:
- Beti Bachao, Beti Padhao – बेटियों के सशक्त बनाने के लिए
- PM Poshan Abhiyan – पोषण संबन्धित सभी जरूरतों के लिए
- Digital India – गरीबों और अमीरों के बीच डिजिटल खाई को पाटना
शैक्षिक और स्वास्थ्य समावेशन के प्रयास:
- RTE Act, Samagra Shiksha Abhiyan – शिक्षा की सबतक आसान पहुँच के लिए
- Ayushman Bharat – Universal Health Coverage, सभी लाभार्थियों के परिवार को 5 लाख सालाना का मुफ्त इलाज़
क्षेत्रीय संतुलन के प्रयास:
- Aspirational Districts Programme
- UDAN Scheme – विकसित और अल्पविकसित क्षेत्रों की कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए
समावेशी विकास से उत्पन्न प्रमुख मुद्दे
- संस्थागत असमानताएं
- Caste-based और gender-based भेदभाव नीतियों के प्रभाव को सीमित करते हैं।
- डिजिटल विभाजन (Digital Divide)
- ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट, डिजिटल साक्षरता और उपकरणों की कमी।
- शहरी-ग्रामीण अंतर
- रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में भारी असमानता।
- नकली समावेशन (Tokenism)
- कुछ योजनाएं कागज़ी साबित होती हैं, जमीनी असर नहीं दिखता।
- आर्थिक वृद्धि और रोजगार सृजन का अलगाव
- GDP बढ़ने के बावजूद jobless growth एक बड़ी समस्या बनी हुई है,अर्थात GDP तो बढ़ रही पर उस अनुपात में लोगों की नौकरी नहीं लग रही
- राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और क्रियान्वयन में भ्रष्टाचार
- योजनाओं का लाभ जरूरतमंद तक नहीं पहुंच पाता।
समाधान और सुझाव (Way Forward)
- वास्तविक समान अवसर का निर्माण – शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश बढ़ाना ताकि अधिक से अधिक लोगों तक लाभ पहुंचे
- E-governance के माध्यम से पारदर्शिता और दक्षता – ताकि विकास वास्तविकता में नीचे पहुंचे न कि केवल पेपरवर्क हो
- नवाचार और स्किलिंग – Job creation के लिए
- Women-centric Policies – सामाजिक संरचनाओं में बदलाव आए,महिलाएं भी सशक्त हों
- डिजिटल समावेशन को मिशन मोड में लागू करना
- Data-driven Governance – योजनाओं की मॉनिटरिंग और मूल्यांकन,जब हमारे पास डाटा सही होगा तो क्रियान्वयन पुख्ता होगा’
निष्कर्ष
भारत जैसे विविधतापूर्ण और जटिल समाज में वास्तविक विकास तभी संभव है जब वह समावेशी हो। समावेशी विकास कोई विकल्प नहीं, बल्कि अनिवार्यता है — न केवल नैतिक दृष्टिकोण से, बल्कि दीर्घकालिक सामाजिक स्थिरता और आर्थिक मजबूती के लिए भी। जब तक समाज के अंतिम व्यक्ति तक विकास नहीं पहुंचेगा, तब तक “विकसित भारत @2047” एक अधूरा सपना ही रहेगा।
उपयोगी उद्धरण (Quotes for Enrichment)
“No society can surely be flourishing and happy, of which the far greater part of the members are poor and miserable.”
— Adam Smith
“Inclusiveness is not charity, it is necessity.”
— Dr. Manmohan Singh
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